Wednesday, June 24, 2015

The use of information technology in BRTS

To improve the quality of its transport services (BRTS – Bus Rapid Transit System) in Bhopal in commuters' information empowerment programme, the Bhopal Municipal Corporation (BMC) should use technology. Delhi Metro stations have an electronic clock that indicates how long the desired Metro train will take to reach this station. In order to avoid the waiting time of the passengers at the bus stands of BRTS, a similar kind of facility, with the appropriate use of Technology, can be provided by BMC in Bhopal too for BRTS passengers who are waiting at the bus stand where a mobile app can be programmed. This Mobile App, using GPS and Google Maps Technology will be able to apprise the passenger as to how far a specific bus is from a specific station and how much time it will take to reach there. The user will use codes or names (in dropdown) for bus number, direction (up or down), and stations (to and from) and be able to retrieve the information. A simpler solution can be provided using mobile technology also where the conductor of the bus at each station will send an sms code that will simply forward these bits of information to some server for data processing, and system will continue to update the status of the bus on the route. This feature will also be available on the website of BRTS.

Sanjay Mohan Bhatnagar

Wednesday, June 17, 2015

बीआरटीएस संचालन में सूचना तकनीक का उपयोग

अपनी परिवहन सेवाओं की गुणवत्‍ता में सुधार हेतु भोपाल नगर निगम को तकनीक का प्रयोग करना चाहिये. दिल्‍ली में मैट्रो रेल के स्‍टेशनों पर एक इलेक्‍ट्रानिक घड़ी यह सूचित करती रहती है कि वांछित मैट्रो ट्रेन कितनी देर में आयेगी. इसी प्रकार भोपाल में भी बीआरटीएस संचालन में यात्रियों को बस स्‍टैंड पर अनावश्‍यक प्रतीक्षा से बचाने के लिये टैक्‍नॉलॉजी का उपयोग कर और एक मोबाईल एप तैयार कर यह अत्‍यंत कम कीमत पर किया जा सकता है. यह मोबाईल एप टैक्‍नॉलॉजी (जीपीएस और गूगल मैप) का उपयोग कर यह बता देगा किसी विशिष्‍ट स्‍टेशन (जैसे विंध्‍याचल भवन) पर किसी गंतव्‍य स्‍थान (जैसे अवधपुरी) की ओर जाने वाली बस (जैसे एसआर 5) अभी कितने किलोमीटर या कितने स्‍टेशन्‍स दूर है. इस एप में यूज़र को मात्र बस नम्‍बर, गंतव्‍य स्‍टेशन तथा दिशा (अप या डाउन) के नाम या कोड का चयन करना होगा. यदि टैक्‍नॉलॉजी को और सरल करना हो, तो प्रत्‍येक स्‍टेशन पर बस का कंडक्‍टर एक एसएमएस भेजेगा, जो उस बस के कोड, बस की डायरेक्‍शन और स्‍टेशन के कोड की जानकारी को प्रेषित करेगा और इस प्रकार बस की स्थिति का सिस्‍टम अपडेट होता रहेगा. यह सुविधा बीआरटीएस की वेबसाईट पर भी उपलब्‍ध हो सकेगी.
विनीत
संजय मोहन भटनागर
भोपाल का नागरिक

Tuesday, June 16, 2015

Happy Birthday Hemantda

अगर जि़न्‍दगी हो अपने ही बस में
तुम्‍हारी क़सम हम न भूलें वो क़समें
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फि़ल्‍म सट्टा बाज़ार (1959) का हेमन्‍त कुमार और लता का गाया हुआ यह गाना महान गायक, मखमली आवाज़ के मालिक हेमन्‍त कुमार द्वारा गाया गया है. हेमन्‍त कुमार द्वारा गाये गाने हिन्‍दु‍स्‍तानी फि़ल्‍मी मौसिक़ी का अनमोल खज़ाना हैं. याद आती है फि़ल्‍म जाल में नेपथ्‍य से उभरती हुई रूमानियत के लबरेज़ आवाज़ ''ये रात ये चांदनी फिर कहां ............'' इस गाने का जिक्र लाजमी लगता है.  इस गाने को दो प्रकार से गाया गया है - एक हेमन्त कुमार और लता मंगेशकर के डुयेट में है जो कुछ ग़मगीन मूड का है. और दूसरा वर्ज़न हेमन्त दा की आवाज़ में है. शायरी के महान जादूरगर साहिर साहब ने एक अंतरे क्‍या शानदार लिखा हैं "पेड़ों की शाख़ों पे सोयी सोयी चांदनी, तेरे ख़यालों मे खोयी खोयी चांदनी, और थोड़ी देर में थक के लौट जाएगी, रात ये बहार की फिर कभी ना आएगी, दो एक पल और है ये समां, सुन जा दिल की दास्ताँ". प्रकृति के सौंदर्य का वास्ता साहिर साहब ने फिल्‍म शगुन के गाने ''पर्बतों के पेडों पर शाम का बसेरा है ........ ' में गजब तरीके से दिया है.


इसके अलावा हेमन्‍त साहब का गाया हुआ फिल्‍म बात एक रात की (1962) का ''न तुम हमें जानो न हम तुम्‍हें जाने ........... '', फिल्‍म प्‍यासा (1957) का गाना ''जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्‍यार को प्‍यार मिला .............'', फिल्‍म हाउस नम्‍बर 44 (1955) का गाना ''तेरी दुनिया में जीने से बेहतर हैं कि मर जायें .......'' और इस तरह के बहुत सारे गाने याद कर, सुन कर, गुनगुना का हेमन्‍त कुमार साहब को आज उनके जन्‍मदिन पर श्रृद्धेय श्रृधांजलि

Sunday, June 14, 2015

रविवार की सुबह

रविवार की अलसाई सी सुबह..

अदरक वाली कड़क चाय..

बीवी के हाथ की

धीमी सी आवाज में बजते गाने..

रसोई मेंं रखे पुराने रेडियो से

आस पास बिखरी किताबें...

शेरोशायरी की, स‍ाहिर की, फ़ैज की और क़तील की

मेरे लिए यही आर्ट ऑफ़ लिविंग है.

साहिर लुधियानवी की याद में दिनांक 08 मार्च को अपने फेसबुकपेज पर लिखी गई पोस्‍ट

तारीख़ 08 मार्च 1921 को पैदा हुये महान उर्दू शायर साहिर लुधियानवी का आज जन्‍मदिन है. यूँ तो साहिर को अनकोअनेक गानों, ग़ज़लों और नज्‍़मों के लिये याद किया जाता है, याद किया जाता रहेगा, मैं आज उनकी कुछ ग़ज़लों को गुनगुनाकर उन्‍हें बेहद सादर और विनम्र श्रृधांजलि देना चाहता हूं. यद्वपि उनकी बहुत सारी फि़ल्‍मों पर गूगल से अथाह जानकारी मिल सकती है, मैं, विशेष रूप से, उन फिल्‍म्‍स का और उन गानों का जि़क्र करना चाहता हूं जो साहिर की याद आते ही दिलोजेहन में ख़ुदबख़ुद सरग़ोशियां मचाने लगते हैं, जैसे फि़ल्‍म प्‍यासा (ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्‍या है, जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्‍यार को प्‍यार मिला, जिन्‍हें नाज़ है हिंद पर वो कहॉ हैं), फि़ल्‍म नौजवान (ठंडी हवाऐं लहरा के आएं), फि़ल्‍म जाल (ये रात ये चांदनी फिर कहां सुन जा दिल की दास्‍तां), फि़ल्‍म हमराज़ (तुम अगर साथ देने का वादा करो), फि़ल्‍म धूल का फूल (तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा), फि़ल्‍म फिर सुबह होगी (वो सुबह कभी तो आयेगी, मुकेश, ख्‍ौयाम), फि़ल्‍म बरसात की रात (जिन्‍दगी भर नहीं भूलेगी ये बरसात की रात, न तो कारवां की तलाश है न तो हमसफ़र की तलाश है मेरे शौक़ेख़ानाख़राब को तेरी रहगुज़र की तलाश है, ये इश्‍क इश्‍क है इश्‍क), फि़ल्‍म चित्रलेखा (मन रे तू काहे न धीर धरे), फि़ल्‍म हम दोनों (मैं जि़न्‍दगी का साथ निभाता चला गया, अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं, अल्‍लाह तेरो नाम), फि़ल्‍म काजल (तोरा मन दर्पण कहलाऐ, छू लेने दो नाज़ुक होठों को), फि़ल्‍म गुमराह (चलो एक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनों) और न‍िश्चित रूप से फि़ल्‍म ''कभी कभी''.
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साहिर का एक और गाना जो फि़ल्‍म अरमान (1953) में तलत ने गाया और जो आमतौर पर कम पॉपुलर है, मेरा दावा है कि यदि आप तलत के गानों के शौकीन हैं, साहिर को पसंद करते है, जनाब एक बार ये गाना यूट्यूब से सुन तो लीजिये, जिस पर ग्रेट सचिनदेव बर्मन ने संगीत संगीत देकर हम सब पर वास्‍तव में अहसान किया है –
भरम तेरी वफ़ाओं का मिटा देते तो क्‍या होता, तेरे चेहरे से पर्दा हटा देते तो क्‍या होता.
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कुछ और अंदाज़ेसाहिर आपके पेशअर्ज, पेश‍ेखि़दमत -
फिल्‍म शगुन में संगीतकार खैयाम द्वारा राग पहाड़ी में कम्‍पोज्‍़ड, रफी और सुमन कल्‍याणपुर द्वारा गाया हुआ -

अब किसी नज़ारे की दिल को आरज़ू क्‍यों हो
जब से पा लिया तुमको सब जहान मेरा है
परबतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है
सुरमई उजाला है चम्‍पई अंधेरा है
दोनों वक्‍त मिलते हैं दो दिलों की सूरत से
आसमां ने ख़ुश होकर रंग सा बिखेरा है ............................
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फि़ल्‍म गुमराह में रवि के संगीत के साथ महेन्‍द्र कपूर का गया हुआ ये गाना -

आज कोई बात नहीं फिर भी कोई बात तो है
मेरे हिस्‍से में ये हलकी सी मुलाक़ात तो है
ग़ैर का होके भी ये हुस्‍न मेरे साथ तो है
हाय किस वक्‍त मुझे कब का गिला याद आया
आप आये तो ख्‍़यालेदिलेनाशाद आया
रूह में जल उठे यादों के दिये
कैसे दीवाने थे हम आपको पाने के‍ लिये .............
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महान साहिर को विनम्र श्रृधांजलि. अपनी लेखनी से उर्दू शायरी को रूमानियत की उचाईयों पर ले जाने का, स्‍थापित कर देने का कमाल जो उन्‍होंने कर दिखाया, वे हम जैसे कद्रदानों की दिलों में हमेशा रहेंगे पर उनकी कमी हमेशा रहेगी. निश्चित रूप से साहिर के नग्‍़मों को शानदार म्‍यूजि़क कम्‍पोज़ीशन मिला और ऐसा गीत-संगीत हिन्‍दी-उर्दू मिक्‍स्‍ड् संस्‍कृति का विरल खजाना है जिसमें मानवीय संवेदनाओं की बेइन्‍तहा ख़ूबसूरत गूंथ है.

"मैं पल दो पल का शायर हूँ, पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है, पल दो पल मेरी जवानी है
मुझसे पहले कितने शायर, आए और आकर चले गए,
कुछ आहें भरकर लौट गए, कुछ नग़मे गाकर चले गए
वो भी एक पल का किस्सा थे, मै भी एक पल का किस्सा हूँ
कल तुमसे जुदा हो जाऊँगा, जो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ"

............... संजय मोहन भटनागर, भोपाल

पुराने फिल्‍मी गीत और योग

कुछ दिन पूर्व डी.डी. भारती पर एक पुराना कार्यक्रम देख रहा था] संचालन नौशाद साहब कर रहे थे] गायक थे मुहम्मद रफी साहब। गाने ऐसे थे जो मुझे बचपन के नाॅस्टेल्जिया में ले गऐ। किसी को भी ले जाते यदि उसने अपने बचपन में रेडियो के ज़रिये पुराने गानों को सुना होता।
लेकिन वो दिन भी क्या दिन थे] पुराने गानों का जुनून सिर चढ़कर बोलता था। पुराने गानों के रेडियो पर प्रसारित होने वाले प्रोग्राम्स के टाईमिंग्स याद रहते थे। खास तौर पर आॅल इंडिया रेडियो की उर्दू मजलिस] उर्दू मजलिस का तप्सरा और विविध भारती का छायागीत।
जिस प्रोग्राम का मैंने ऊपर जि़क्र किया वो शायद 1975-1980 के बीच का प्रोग्राम था (मुहम्मद रफी साहब की मृत्यू 31 अक्टूबर 1980 को हो गई थी)। प्रोग्राम में सारा म्यूजि़क नौशाद साहब के निर्देशन में अनेक फनकारों द्वारा दिया जा रहा था। सारंगी वादक थे] तबला वादक थे] और बहुत सारे फनकार थे। जब रफी साहब ने बैजू बावरा से गाना शुरू किया] ओ दुनिया के रखवाले और गाने की शुरूआत में अपने ओजस्वी स्वर में चार बार भगवान बोला] यकीन मानिये आस पास जैसे एक यख्वस्ता खामोशी छा गई, जैसे वक्त ठहर गया] जैसे भगवान स्वंय ज़मीन पर उतर आये और जैसे दिल ने धड़कना बंद कर दिया।
योग और प्राणायाम में विभिन्न आसनों के माध्यम से दिल की दो धड़कनों के बीच के समय को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है] मगर हिन्दुस्तानी मौसिकी में अनेक गाने ऐसे हैं] जो ये कार्य बखूबी कर सकते हैं।