अगर जि़न्दगी हो अपने ही बस में
तुम्हारी क़सम हम न भूलें वो क़समें
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फि़ल्म सट्टा बाज़ार (1959) का हेमन्त कुमार
और लता का गाया हुआ यह गाना महान गायक, मखमली आवाज़ के मालिक
हेमन्त कुमार द्वारा गाया गया है. हेमन्त कुमार द्वारा गाये गाने हिन्दुस्तानी
फि़ल्मी मौसिक़ी का अनमोल खज़ाना हैं. याद आती है फि़ल्म जाल में नेपथ्य से उभरती
हुई रूमानियत के लबरेज़ आवाज़ ''ये रात ये चांदनी फिर
कहां ............'' इस गाने का जिक्र लाजमी लगता
है. इस गाने को दो प्रकार से गाया गया है - एक हेमन्त कुमार और लता मंगेशकर के डुयेट में है जो कुछ ग़मगीन मूड का है. और दूसरा वर्ज़न हेमन्त
दा की आवाज़ में है. शायरी के महान जादूरगर साहिर साहब ने एक अंतरे क्या शानदार लिखा हैं "पेड़ों की शाख़ों पे सोयी सोयी
चांदनी, तेरे ख़यालों मे खोयी खोयी चांदनी, और थोड़ी देर में थक के लौट जाएगी, रात ये बहार की फिर कभी ना आएगी, दो एक पल और है ये समां, सुन जा दिल की दास्ताँ". प्रकृति के
सौंदर्य का वास्ता साहिर साहब ने फिल्म शगुन के गाने ''पर्बतों के पेडों पर शाम का बसेरा है ........ ' में गजब तरीके से दिया है.
इसके अलावा हेमन्त साहब का गाया हुआ फिल्म बात एक रात की (1962) का ''न तुम हमें जानो न हम तुम्हें जाने ...........
'', फिल्म प्यासा (1957)
का गाना ''जाने वो कैसे लोग थे जिनके
प्यार को प्यार मिला .............'', फिल्म हाउस नम्बर 44 (1955) का गाना ''तेरी दुनिया में जीने से बेहतर हैं कि मर जायें .......'' और इस तरह के बहुत सारे गाने याद कर, सुन कर, गुनगुना का हेमन्त कुमार साहब को आज उनके
जन्मदिन पर श्रृद्धेय श्रृधांजलि
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