तारीख़ 08 मार्च 1921 को पैदा हुये महान उर्दू शायर साहिर लुधियानवी का आज जन्मदिन है. यूँ तो साहिर को अनकोअनेक गानों, ग़ज़लों और नज़्मों के लिये याद किया जाता है, याद किया जाता रहेगा, मैं आज उनकी कुछ ग़ज़लों को गुनगुनाकर उन्हें बेहद सादर और विनम्र श्रृधांजलि देना चाहता हूं. यद्वपि उनकी बहुत सारी फि़ल्मों पर गूगल से अथाह जानकारी मिल सकती है, मैं, विशेष रूप से, उन फिल्म्स का और उन गानों का जि़क्र करना चाहता हूं जो साहिर की याद आते ही दिलोजेहन में ख़ुदबख़ुद सरग़ोशियां मचाने लगते हैं, जैसे फि़ल्म प्यासा (ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है, जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला, जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहॉ हैं), फि़ल्म नौजवान (ठंडी हवाऐं लहरा के आएं), फि़ल्म जाल (ये रात ये चांदनी फिर कहां सुन जा दिल की दास्तां), फि़ल्म हमराज़ (तुम अगर साथ देने का वादा करो), फि़ल्म धूल का फूल (तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा), फि़ल्म फिर सुबह होगी (वो सुबह कभी तो आयेगी, मुकेश, ख्ौयाम), फि़ल्म बरसात की रात (जिन्दगी भर नहीं भूलेगी ये बरसात की रात, न तो कारवां की तलाश है न तो हमसफ़र की तलाश है मेरे शौक़ेख़ानाख़राब को तेरी रहगुज़र की तलाश है, ये इश्क इश्क है इश्क), फि़ल्म चित्रलेखा (मन रे तू काहे न धीर धरे), फि़ल्म हम दोनों (मैं जि़न्दगी का साथ निभाता चला गया, अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं, अल्लाह तेरो नाम), फि़ल्म काजल (तोरा मन दर्पण कहलाऐ, छू लेने दो नाज़ुक होठों को), फि़ल्म गुमराह (चलो एक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनों) और निश्चित रूप से फि़ल्म ''कभी कभी''.
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साहिर का एक और गाना जो फि़ल्म अरमान (1953) में तलत ने गाया और जो आमतौर पर कम पॉपुलर है, मेरा दावा है कि यदि आप तलत के गानों के शौकीन हैं, साहिर को पसंद करते है, जनाब एक बार ये गाना यूट्यूब से सुन तो लीजिये, जिस पर ग्रेट सचिनदेव बर्मन ने संगीत संगीत देकर हम सब पर वास्तव में अहसान किया है –
भरम तेरी वफ़ाओं का मिटा देते तो क्या होता, तेरे चेहरे से पर्दा हटा देते तो क्या होता.
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कुछ और अंदाज़ेसाहिर आपके पेशअर्ज, पेशेखि़दमत -
फिल्म शगुन में संगीतकार खैयाम द्वारा राग पहाड़ी में कम्पोज़्ड, रफी और सुमन कल्याणपुर द्वारा गाया हुआ -
अब किसी नज़ारे की दिल को आरज़ू क्यों हो
जब से पा लिया तुमको सब जहान मेरा है
परबतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है
सुरमई उजाला है चम्पई अंधेरा है
दोनों वक्त मिलते हैं दो दिलों की सूरत से
आसमां ने ख़ुश होकर रंग सा बिखेरा है ............................
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फि़ल्म गुमराह में रवि के संगीत के साथ महेन्द्र कपूर का गया हुआ ये गाना -
आज कोई बात नहीं फिर भी कोई बात तो है
मेरे हिस्से में ये हलकी सी मुलाक़ात तो है
ग़ैर का होके भी ये हुस्न मेरे साथ तो है
हाय किस वक्त मुझे कब का गिला याद आया
आप आये तो ख़्यालेदिलेनाशाद आया
रूह में जल उठे यादों के दिये
कैसे दीवाने थे हम आपको पाने के लिये .............
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महान साहिर को विनम्र श्रृधांजलि. अपनी लेखनी से उर्दू शायरी को रूमानियत की उचाईयों पर ले जाने का, स्थापित कर देने का कमाल जो उन्होंने कर दिखाया, वे हम जैसे कद्रदानों की दिलों में हमेशा रहेंगे पर उनकी कमी हमेशा रहेगी. निश्चित रूप से साहिर के नग़्मों को शानदार म्यूजि़क कम्पोज़ीशन मिला और ऐसा गीत-संगीत हिन्दी-उर्दू मिक्स्ड् संस्कृति का विरल खजाना है जिसमें मानवीय संवेदनाओं की बेइन्तहा ख़ूबसूरत गूंथ है.
"मैं पल दो पल का शायर हूँ, पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है, पल दो पल मेरी जवानी है
मुझसे पहले कितने शायर, आए और आकर चले गए,
कुछ आहें भरकर लौट गए, कुछ नग़मे गाकर चले गए
वो भी एक पल का किस्सा थे, मै भी एक पल का किस्सा हूँ
कल तुमसे जुदा हो जाऊँगा, जो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ"
............... संजय मोहन भटनागर, भोपाल