Monday, December 29, 2014

चीनी का न्‍यूनतम विक्रय मूल्‍य

भारत की सरकार, गन्ना फसल जो चीनी के लिए कच्चा माल है, के लिए एफआरपी यानी उचित और लाभकारी मूल्य, (दूसरे शब्दों में, MSP or Minimum Support Price or सांविधिक न्यूनतम मूल्य) का निर्धारण करती है। ठीक है, परन्‍तु चीनी, जो शुगर मिल्‍स का उत्‍पाद है, के मूल्‍य को केन्‍द्र सरकारों द्वारा बाजार की शक्तियों की दया पर क्यों छोड़ दिया गया है। इस असमान नीति के कारण देश की चीनी मिलें एक बड़े आर्थिक नुकसान से पीड़ित हैं. देश में, गन्ने का ख़रीद मूल्‍य लगभग रुपये 2500 प्रति मीट्रिक टन से 2800 प्रति मीट्रिक टन के दरम्‍यान रहता है. शुगर मिलों से चीनी की 10% औसत रिकवरी को द्रष्टिगत रखते हुये, एक मीट्रिक टन गन्‍ने की क्रशिंग से चीनी की लगभग एक क्विंटल मात्रा बनती है, जो बिकने पर चीनी मिल को मात्र रुपये 2700-2800 ही उपलब्‍ध करा पाती है. चीनी मिलों को और भी कई अन्य खर्चों के लिए व्‍यवस्‍था करनी पड़ती है. आमदनी और व्‍ययों के इन आँकड़ों के साथ कैसे एक चीनी मिल जीवित रह सकती हैं?

इसलिए, सरकार को चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य भी तय करना चाहिये. सरकार का यह कदम चीनी की कीमत में एक न्‍यून वृद्धि कर सकता हैं, लेकिन यह चीनी उद्योग को बड़ी राहत देगा. और यहां तक कि चीनी के वर्तमान दामों में 5 रुपए तक की प्रति किलो वृद्धि से एक परिवार को मात्र लगभग रूपये 25 का अतिरिक्‍त खर्च वहन करना होगा. मीडिया इस निर्णय पर बवाल मचायेगा, लेकिन अंतत: ऐसा निर्णय एक ऐसे उद्योग का सशक्तिकरण करेगा, जो असंगठित क्षेत्र में और संगठित क्षेत्र में रोजगार देने के करोड़ों अवसरों का ख्याल रखता है, और जिसके द्वारा भारत सरकार को केन्द्रीय उत्पाद शुल्क के रूप में भारी राजस्व देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा रही है.

भारतीय चीनी उद्योग प्रति वर्ष लगभग 250 लाख मीट्रिक टन, या 2500 लाख क्विंटल चीनी का शक्‍कर उत्‍पादन करता है। चीनी पर केन्द्रीय उत्पाद शुल्क की दर (प्रति क्विंटल लगभग रु. 100) को देखते हुए, यह शुल्‍क राशि लगभग रू. 100 X 2500 X 100000 = रु. 25,00,00,00,000, यानी रु. 2500 करोड़ रुपये ऑकलित होती है. यह एक बहुत बड़ी राशि है. और याद रहे, यहॉ हम अभी मोलासिस (शीरा) पर लगने वाली सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी पर विचार नहीं कर रहे हैं.

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